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मतदाता हैं साइलेंट, 13 को प्रत्याशी का भाग्य तय करेगा बैलेट…

दक्षिण विधानसभा उपचुनाव मे कांग्रेस-भाजपा ने कसी कमर

रायपुर/लोकसभा सांसद बृजमोहन अग्रवाल के सांसद बनने के बाद दक्षिण विधानसभा के विधायक का पद रिक्त हो गया था। इसके लिए फिर चुनाव होने जा रहा है, जिसमें 13 नवंबर को मतदान होने हैं। आमतौर पर उपचुनाव सत्ताधारी दल के पक्ष में जाते हैं लेकिन छत्तीसगढ़ में ही कोटा और वैशालीनगर उपचुनाव में इसके उलट परिणाम देखने को मिले थे। दक्षिण विधानसभा को हमेशा से भाजपा का गढ़ माना जाता रहा है। इसके पीछे लोकप्रिय नेता बृजमोहन अग्रवाल की छवि और उनकी रणनीति मानी जाती रही है। साथ ही मातृ संगठन, आरएसएस का यहां पर अच्छा प्रभाव देखने को मिलता रहा है। चुंकी दक्षिण विधानसभा रायपुर के पुराने स्वरूप को प्रदर्शित करता है।
यहां पर पुरानी बस्ती, ब्राम्हण पारा, कंकाली पारा, कुशालपुर, आमापारा जैसे तमाम पुराने क्षेत्र रहे हैं, जहां छत्तीसगढ के पुराने संस्कृति की झलक देखने को मिलते हैं। यहां पर कई पुराने मंदिर, मठ भी स्थापित हैं। इनके प्रति लोगांे की आस्था रही है। यहीं नही इस क्षेत्र में छत्तीसगढ़ का सामाजिक तानाबाना विद्यमान है, जैसे ब्राम्हण पारा के आस पास राउत पारा, धोबीपारा, भोईपारा है। यह माना जाता हैै कि यहां के मतदाता परंपरावादी है और पुराने संबंधों को अहमियत देते हैं। मगर इस समय दोनो प्रमुख दलों के प्रत्याशी इस क्षेत्र के लिए नए हैं। चूंकि ब्राम्हण मतदाताओं की संख्या करीब 35 हजार है। जिनका पिछले चुनाव में अपेक्षाकृत भाजपा के प्रति रहा है। मगर ब्राम्हण पारा की बात करें तो वहां पर पुराने समय में कांग्रेस या समाजवादी विचारधारा का प्रभाव भी रहा है। अब बृजमोहन अग्रवाल के इस्तीफे के बाद ब्राम्हण मतदाताओं का रूख अगल दिख रहा है। सोशल मीडिया और चौक-चौराहों में एक जुट होने की खबर आ रही है। इसलिए कांग्रेस ने ब्राम्हण प्रत्याशी पर दांव लगाया है तो अब भाजपा भी मतदाताओं को रिझाने के लिए भाजपा के ब्राम्हण नेताओं को यह निरंतर भेज रही है, जो छोटे-बड़े आयोजनों से ब्राम्हण समाज के प्रमुखों को अपने पक्ष में सहमत करने का प्रयास कर रहें हैं। मगर अभी ब्राम्हण मतदाता साइलेंट है। वे सभी पार्टियों के कार्यक्रमों में शामिल तो हो रहे हैं, परंतु वे किस पार्टी पर मुहर लगाते है। यह खुलासा नही कर रहे है।  दूसरी ओर 2019 के लोकसभा और दूसरे ओर गत विधानसभा चुनाव मे आरएसएस के कैडल अलग-अलग माध्यमों से सक्रिय दिखें थे। अभी यह स्थिति नही दिख रही है। उपचुनाव को लेकर कोई विशेष पहल नही कर रहे हैं। इस स्थिति में यह चुनाव रोचक मोड़ पर आ रहा हैं, हो सकता है कि 23 नवंबर को होने वाले मतगणना के परिणाम पुराने ट्रेंड के विपरीत भी देखने को ना मिले। अब सब वाकई मे यह लग रहा है कि लोकतंत्र मतदाता भाग्य विधाता होते हैै, वही प्रत्याशियों की किस्मत तय करेंगे।

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