मत्स्य पालन से ग्रामीणों की आजीविका और आत्मनिर्भरता को मिला नया बल

बिलासपुर जिला बना छत्तीसगढ़ में मछली उत्पादन का अग्रणी केंद्र
रायपुर, 17 अक्टूबर 2025/ छत्तीसगढ़ के रजत जयंती वर्ष में बिलासपुर जिले ने मत्स्य पालन के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। जिले ने गांव-गांव में मछली पालन के जरिए आजीविका, आत्मनिर्भरता और आर्थिक स्थिरता की मजबूत नींव रखी है।राज्य गठन के समय वर्ष 2000 में बिलासपुर में केवल 3,333 तालाब मछली पालन के लिए पट्टे पर थे और उत्पादन 21,120 मीट्रिक टन था। आज जिले में 4,946 तालाब मछली पालन के लिए उपयोग में हैं और उत्पादन बढ़कर 48,488 मीट्रिक टन तक पहुँच गया है। पट्टे पर जल क्षेत्र भी 5,679 हेक्टेयर से बढ़कर 10,960 हेक्टेयर हो गया है।
जिले में मछली पालन को पारंपरिक तरीके से आधुनिक और वैज्ञानिक पद्धतियों की ओर ले जाया गया है। इसमें प्लेकटान ग्रोवर तकनीक, झींगा पालन, केज कल्चर, बायोफ्लॉक और पॉन्ड लाइनर जैसी तकनीकों को अपनाया गया है। इससे खासकर छोटे किसानों और युवाओं को मछली पालन की ओर आकर्षित किया गया है और यह एक लाभदायक व्यवसाय बन गया है।
मत्स्य पालन विभाग की योजनाओं से अब तक जिले के 8,980 से अधिक हितग्राही बीमा और वित्तीय सहायता का लाभ ले चुके हैं। किसान क्रेडिट कार्ड योजना ने भी मछुआरों को आर्थिक रूप से मजबूत किया है।
वर्ष 2016 में तोरवा क्षेत्र में 1 करोड़ रुपये की लागत से छत्तीसगढ़ का पहला हाइटेक फिश मार्केट बनाया गया, जिसमें थोक व फुटकर दुकानें, आइस प्लांट और सजीव मछली विक्रय जैसी आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध हैं। इसके अलावा नदी आधारित मत्स्य पालन को भी बढ़ावा दिया गया है। शिवनाथ नदी के जोंधरा एनीकट में 300 हेक्टेयर जल क्षेत्र को मछुआ सहकारी समिति को 10 साल के लिए पट्टे पर दिया गया है।
ग्राम भैसाझार के श्री इग्नियश मिंज ने आधुनिक तकनीक से प्रति वर्ष 55 मीट्रिक टन मछली उत्पादन कर उदाहरण पेश किया है। उन्हें प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना के तहत मछली परिवहन वाहन भी मिला।
इन उपलब्धियों के कारण बिलासपुर जिला आज छत्तीसगढ़ में मछली पालन का अग्रणी जिला बन चुका है। यह योजनाओं के प्रभावी क्रियान्वयन और तकनीक के उपयोग का एक सफल उदाहरण है।